भारतीय संविधान दुनिया के ऐसे संविधानों मे एकहै जो एक लिखित संविधान है यानि इसके सभी अनुछ्छेद(Article) और Acts को लिख कर एक Documents तैयार की गई है , जो दुनिया के कुछ ही देश ऐसे हैnजिसका संविधान लिखित रूप मे उपलब्ध है और इन्हे बिना किसी कानूनी प्रक्रिया से बदला नहीं जा सकता । भारत इनमे से ही एक है जिसका संविधान देश को एक मजबूत आधार प्रदान करता है । और देश वासियों को कानूनी तरीके से जीवन यापन करने का मार्गदर्शन
करता है । अनुच्छेद 30 क्या है ? What is Article 30 ?
कभी कभी इसी संविधान के किसी अनुच्छेद और Act पर कई सारे सवाल उठाए जाते। संविधान के ऐसे एक अनुछ्चेद 30 ( Article 30 ) दिनों चर्चा का विषय है तो आइये जानते है इसकी पूरी जानकारी
What is Article 30 ?
इसके दो भाग है एक है Article 30(1) और दूसरा 30(1A) व 2 Article 30(1)
Article 30(1)
इस Article 30(1) के अनुसार देश के सभी धर्मो और भाषा पर आधारित सभी वर्गों के अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि के अनुसार शिक्षण संस्थान खोलने की अनुमति देता है
Article 30(1A)
Article 30(1A) के अनुसार अल्पसंख्यक द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी शैक्षणिक संस्थान की किसी भी संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण के लिए कोई कानून बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसा कानून, अल्पसंख्यकों के अधिकारों को ना तो रोकोगा और ना ही निरस्त करेगा। और इसके भाग 2 के अनुसार, देश की सरकार धर्म या भाषा की वजह से किसी भी अल्पसंख्यक समूह द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थानों को सहायता देने में कोई भी भेदभाव नहीं करेगी।
खास बातें
Article 30 के तहत दी गई सुरक्षा केवल अल्पसंख्यकों तक सीमित है और इसे देश के सभी नागरिकों तक विस्तारित नही किया जाता है। राज्य सरकार या कोई भी इसके विरुद्ध इस आधार पर विरोध नहीं करेगा की वो धर्म या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक समुदाय से संबन्धित है ।
राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि संपत्ति के अधिग्रहण के लिए जरूरी राशि समुदाय के बजट से अधिक ना हो। इसलिए, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि अनुच्छेद के तहत प्रत्याभूत अधिकार प्रतिबंधित या रद्द ना किया गया हो ।
अनुच्छेद 30 में एक स्तरीय खेल का मैदान बनाने के लिए भी एक उपधारा है। समानता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान अनुच्छेद 30 में शामिल है। ये अनुछ्चेद देश के अल्पसंख्यक समुदाय को ये अधिकार देती है की वे अपनी भाषा मे अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करें यानि मुसलमान चाहे तो अपने बच्चो को उर्दू और ईसाई चाहे तो अँग्रेजी पढ़ा सकता है । देश मे अल्पसंख्यक के लिए तीन प्रकार के शिक्षण संस्थान है.
- वैसे संस्थान जो सरकार से मान्यता प्राप्त
हो और सरकार से आर्थिक सहायता की मांग भी करते हों । - वैसे संस्थान जो सरकार से केवल मान्यता की
मांग करती हो आर्थिक सहायता की नहीं । - वैसे संस्थान जो न तो राज्य से मान्यता
प्राप्त हो और नहीं किसी प्रकार की आर्थिक सहायता की मांग करते हों।
अगर इन प्रकारों को और बेहतर जाने तो संख्या 1 और 2 वाले संस्थान सरकार के नियमो का पालन करने लिए बाध्य है यानि इनसे पाठ्यक्रम,रोजगार,स्वक्छ्ता आदि का ध्यान रखना होगा और संख्या 3 वाले संस्थान अपने नियम लागू करने के लिए स्वतंत्र है लेकिन ये श्रम कानून अनुबंधन कानून आर्थिक कानून आदि का पालन करना होगा । ये अपने संस्थान मे तर्कसंगत प्रक्रिया द्वारा किसी शिक्षक या अन्य कर्मचारी की नियुक्ति कर सकते है ।
Article 30 पर सुप्रीम कोर्ट ने 2007 मे मलंकारा सीरियन कैथोलिक कॉलेज केस के फैसले मे ये कहा की अल्पस्यंख्यकों को ये दर्जा इसलिए दिया गया की वे बहुस्यंख्यकों के साथ उनकी समानता सुनिशित हो । ये अनुच्छेद कभी ये नहीं कहता की उन्हे अधिक फायदा हो । इन्हे संविधान के तहत राष्ट्रीय हित एवं सुरक्षा ,सामाजिक हित, आर्थिक हित और नैतिकता आदि सभी कानून का पालन करते हुये सभी कार्य करने होंगे ।
ये तो थी Article 30 की बातें और इसकी विशेषता अब सवाल ये है की आखिर इसपर इतनी बहस क्यूँ हो रही है आइये इसका विश्लेषण करें । असल मे बहस Article 30 मे नहीं बल्कि Article 30A को लेकर हो रही है जो भारतीय संविधान मे काही भी आर्टिक्ल 30A की चर्चा नहीं है Article 30 के सिर्फ दो पार्ट है एक 30(1)एवं 30(1A),2 । बहस इस बात पर भी हो रही है की आर्टिक्ल 30 देश मे समानता के अधिकारो का खंडन करता है जबकि सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ कर दिया है की ये किसी भी तरह से अल्पस्यंख्यकों को गैर कानूनी कार्य करने ये भेदभाव करने की इजाजत बिलकुल भी नहीं देता । 27 जनवरी 2014 के भारत के राजपत्र के मुताबिक मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी और जैन को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया गया है।