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मजबूरी का नाम महात्मा गांधी क्यूँ कहा जाता है ? Majburi ka Nam Mahatma Gandhi Kyun kaha Gya hai

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Hello Friends हम अक्सर अपने दैनिक जीवन मे या फिर अपने बोलचाल के दौरान कुछ ऐसे वाक्य का इस्त्माल करते है जिसका अगर आप गौर करें तो आपको उस वाक्य के पीछे का कारण कभी समझ नहीं आएगा लेकिन आज Knowledge Panel मे हम चर्चा करेंगे के एक ऐसे वाक्य का जिसे आप अक्सर या यू कहें हर रोज खुद बोलते या किसी से बोलते सुना होगा – “मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ” majburi ka naam Mahatma Gandhi

 


जी हाँ क्या अपने कभी खुद के या किसी और के लिए ऐसा शब्द का इस्त्माल किया है? अगर किया तो क्या आप जानते है की मजबूरी का नाम महात्मा गांधी ही क्यूँ है ? अगर नहीं तो इस आर्टिक्ल को पूरा पढ़ें ।

Facts of Mahatma Gandhi

“मजबूरी का नाम महात्मा गांधी” क्यूँ कहा जाता है ?

दोस्तो जब आप महात्मा गांधी की जीवनी पढ़ेंगे तो आप जानेंगे की गांधी जी जीवन मे South Africa का काफी जिक्र हुआ है । बात उन दिनों की है जब गांधी जी एक साल के कांट्रैक्ट पर किसी क्लाईंट के केस के शीलसिले मे कानूनी वकील बन कर South Africa गए थे ट्रेन मे उनकी फ़र्स्ट क्लास की टिकिट थी ,लेकिन जब वे ट्रेन पर बैठे तो वहाँ मौजूद South African निवासी उन्हे रंग भेद कर यानि काले आदमी कह कर बाहर निकाल दिया और काफी मारपीट भी हुई रेलवे के अधिकारियों से गांधी जी की काफी कहा सुनी भी हुई लेकिन गांधी जी इस बात के अड़ गए की वे अपने ही क्लास मे बैठ कर यात्रा करेंगे कोई चाहे तो उन्हे बाहर फेक दे ।

फिर जब वे कोर्ट मे जज के सामने अपनी दलील पेश करने लगे तो जज ने उन्हे अपनी पगड़ी हटाने कहा और वहाँ ही उन्हे रंग भेद को लेकर कभी शर्मिंदा होना पड़ा लेकिन मजबूरन उन्हे एक साल तक वहाँ रहना था क्यूंकी उनका एक साल का कांट्रैक्ट था ।

बहुत सारी यातना और शर्मिंदगी सहने के बाद भी वे वहाँ रह रहे थे ये उनकी मजबूरी थी या मजबूती ये समझ समझ का फेर है । उसके बाद वहाँ उन्होने रहने वाले भारतीय को एक कर उनके साथ मिल कर अफ्रीका मे होने वाले रंगभेद के खिलाफ आंदोलन शुरू किया जिसे सत्याग्रह या सामूहिक सविनय अवज्ञा आंदोलन (civil disobedience movement) का नाम दिया । इस आंदोलन की चर्चा पूरे विश्व मे होने लगी गांधी जी की मजबूती और हौसले की तारीफ हर जगह होने लगी। अफ्रीका मे एक वर्ष होने के बाद उन्होने मे सत्याग्रह से पूरे विश्व मे अपनी छाप छोड़ी इसके बाद गोपाल कृष्ण गोखले ने सान 1915 मे गांधी जी को भारत बुलाया और कहा की आप इस सत्याग्रह की नेतृत्व भारत से करो यहाँ भी आपकी जरूरत है इसलिए इस दिन हर वर्ष 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस (Pravasi Bharatiya Divas) के रूप मे मनाया जाता है ।

इस प्रकार अफ्रीका मे अपने क्लाईंट जिनका केस लड़ने गए थे उनको दिये हुये वचन के लिए गांधी जी की इतनी बेज्जती हुई ट्रेन से भी निकले गए मारपीट भी हुई कोर्ट मे भी शर्मिंदा होना पड़ा लेकिन फिर भी वे मजबूरन वहाँ रहे और फिर मजबूती के साथ इसका सामना भी किया और आंदोलन भी किया ।

इस प्रकार गांधी जी मजबूत भी थे और मजबूर भी । ऐसे कई सारे कहवाते और कहानी गांधी जी के जीवन से जुड़ी है जिसे जान कर आप कहेंगे की शायद उन्होने ने ये मजबूरन किया क्यूंकी उनके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं था । इसलिए कई बार गांधी जी को लोगों से बुरा भला भी सुनना पड़ा क्यूंकि लोगों को लगता था की जो
काम गांधी जी मजबूरी मे आकार करते है उन्हे उसके खिलाफ रहना चाहिए था । 
कई बार धर्म के नाम पर देश मे कई सरे हत्याएं हुई धर्म परिवर्तन का दौर चला लेकिन गांधी जी चुप रहे उस वक्त उन्होने ने सोचा उनका चुप रहना ही सही है । इस प्रकार महात्मा गांधी मजबूर थे या मजबूत ये फैसला आपके हाथ मे आपकी सोच मे है ।


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